अब किसान बिना मिट्टी के भी खेती कर सकेंगे, जानिए पूरा प्रोसेस

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नई दिल्ली।बढ़ती जनसंख्या के साथ देश में खेती के लिए जमीन की कमी सी आ रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या को घर चाहिए और इस वजह से बड़े शहर से लेकर छोटे शहरों तक हर जगह खेती के जमीन कम होने लगे है और खाली जमीन आवास में तब्दील होने लगे है। ऐसे में जरुरत है कोई नई तकनीक की जिससे आप बिना मिट्टी और जगह के आसानी से कम झंझट में खेती कर सकें और साथ ही इससे मुनाफा भी कमा सकें।

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हालांकि, बदलते समय में पैदा होनेवाली नयी चुनौतियों से निबटने के लिए हमारे वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहें है और नए नए तरीके लाने का प्रयास कर रहे है। लेकिन फिर भी जब हम कृषि के बारे में सोचते हैं तो उसके साथ उपजाऊ भूमि यानी खेतों की तस्वीर भी उभर कर सामने आती है। यदि कहा जाये कि बिना मिट्टी के भी फल-सब्जियां पैदा हो सकती हैं, तो सुन कर थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन ऐसा संभव है। जी हां, आज हम ऐसे तकनीक की बात कर रहे है जो आपको बिना मिट्टी के खेती करने का तरीका बताएगा।
इजराइल, जापान, चीन और अमेरिका आदि देशों के बाद अब भारत में भी यह तकनीक दस्तक दे चुकी है और काफी सफल भी है। इसकी सफलता को देखते हुए इंडोनेशिया, सिंगापुर, सऊदी अरब, कोरिया जैसे देशों से इस तकनीक की मांग तेजी से बढ़ रही है। किसान इस तकनीक से खीरा, टमाटर, पालक, गोभी, शिमला मिर्च जैसी सब्जियां उगा सकते हैं।

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बिना मिट्टी के खेती के इस तकनीक को ‘स्वॉयललेस कल्टीवेशन’ Soilless Cultivation कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘हाइड्रोपोनिक्स’ यानी जलकृषि नाम दिया है। इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं होता है, इसे केवल पानी में या लकड़ी का बुरादा, बालू अथवा कंकड़ों को पानी में डाला जाता है। उसके बाद अन्य इंतजाम करने होते हैं। सामान्यतया पेड़-पौधे अपने आवश्यक पोषक तत्व जमीन से लेते हैं, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराने के लिये पौधों में एक विशेष प्रकार का घोल डाला जाता है।
इस घोल में पौधों की बढ़वार के लिए आवश्यक खनिज और पोषक तत्व मिलाए जाते हैं। पानी, कंकड़ों या बालू आदि में उगाए जाने वाले पौधों में इस घोल की महीने में दो-एक बार केवल कुछ बूंदें ही डाली जाती हैं। इस घोल में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, मैग्नीशियम, कैल्शियम, सल्फर, जिंक और आयरन आदि तत्वों को एक खास अनुपात में मिलाया जाता है, ताकि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते रहें। इसमें पौधों के विकास के लिए जरूरी पोषक तत्वों का घोल पानी में मिला दिया जाता है। पोषक तत्वों व ऑक्सीजन को पौधे की जड़ों तक पहुंचाने के लिए एक पतली नली या पंपिंग मशीन का प्रयोग होता है।

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जानिए क्या लाभ हैं हाइड्रोपोनिक्स के ?
परंपरागत तकनीक से पौधे और फसलें उगाने की अपेक्षा हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के कई लाभ हैं। इस तकनीक से विपरीत जलवायु परिस्थितियों में उन क्षेत्रों में भी पौधे उगाए जा सकते हैं, जहां जमीन की कमी है अथवा वहां की मिट्टी उपजाऊ नहीं है।
हाइड्रोपोनिक्स के कुछ लाभ इस प्रकार हैं – इस तकनीक से बेहद कम खर्च में पौधे और फसलें उगाई जा सकती हैं। एक अनुमान के अनुसार 5 से 8 इंच ऊंचाई वाले पौधे के लिये प्रति वर्ष एक रुपए से भी कम खर्च आता है। इस तकनीक में पौधों को आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिये आवश्यक खनिजों के घोल की कुछ बूंदें ही महीने में केवल एक-दो बार डालने की जरूरत होती है। इसलिये इसकी मदद से आप कहीं भी पौधे उगा सकते हैं। परंपरागत बागवानी की अपेक्षा हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से बागवानी करने पर पानी का 20 प्रतिशत भाग ही पर्याप्त होता है। यदि हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जाता है तो कई तरह की साक-सब्जियां बड़े पैमाने पर अपने घरों और बड़ी-बड़ी इमारतों में ही उगाई जा सकेंगी। इससे न केवल खाने-पीने के सामान की कीमत कम होगी, बल्कि परिवहन का खर्चा भी कम हो जाएगा। चूंकि इस विधि से पैदा किए गए पौधों और फसलों का मिट्टी और जमीन से कोई संबंध नहीं होता, इसलिये इनमें बीमारियां कम होती हैं और इसलिए इनके उत्पादन में कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करना पड़ता है। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में पौधों में पोषक तत्वों का विशेष घोल डाला जाता है, इसलिये इसमें उर्वरकों एवं अन्य रासायनिक पदार्थों की आवश्यकता नहीं होती है। जिसका फायदा न केवल हमारे पर्यावरण को होगा, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिये भी अच्छा होगा। हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से उगाई गइ सब्ज़ियां और पौधे अधिक पौष्टिक होते हैं। हाइड्रोपोनिक्स विधि से न केवल घरों एवं फ्लैटों में पौधे उगाए जा सकते हैं, बल्कि बाहर खेतों में भी फसलें उगाई जा सकती हैं। इस विधि से उगाई गई फसलें और पौधे आधे समय में ही तैयार हो जाते हैं। जमीन में उगाए जाने वाले पौधों की अपेक्षा इस तकनीक में बहुत कम स्थान की आवश्यकता होती है। इस तरह यह जमीन और सिंचाई प्रणाली के अतिरिक्त दबाव से छुटकारा दिलाने में सहायक होती है।
तो फिर आप इस विधि से अपने घरों से लेकर छतों तक या फिर किसान अपने खेतों तक अपनी पसंद की बागवानी कर सकते है।

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