Dark Horse: Free PDF Download in Hindi | पीडीएफ डाउनलोड

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Dark horse book in hindi pdf download
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Dark Horse: Download free in Hindi pdf

आज हम आपको हिंदी की एक ऐसी किताब के बारें में बताएँगे जिसे पढ़कर आपको सरकारी नौकरी खासकर करके यूपीएससी की तैयारी करने के लिए प्रेरणा मिलेगी। यह किताब एक नॉवेल की विधा में है। इसे आप इस पोस्ट के माध्यम से फ्री में पीडीऍफ़ फॉर्म में डाउनलोड भी कर सकते हैं। आइये इस किताब के बारें में विस्तार से जानते हैं।

 

इस किताब को नीलोत्पल मृणाल ने लिखा है। यह किताब कई अवार्ड जीत चुकी है।

संतोष का ग्रेज्युएशन खत्म हुआ तो उसने आई ए एस की तैयारी करने का फैसला किया। संतोस का बैकग्राउंड ऐसा था कहा जाता था कि डॉक्टर, इंजीनियर बनकर आप अपना करियर बना सकते हैं, लेकिन अगर आपको अपने साथ-साथ अपनी कई और कई पीढ़ियों का करियर बनाना है तो आपको आईएएस बनना होगा। इसी सोच के चलते संतोष भी निकल पड़ा आई एस की तैयारी करने के लिए और उसने इसके लिए आई एस की तैयारी का मक्का कहे जाने वाले मुखर्जी नगर को चुना। दिल्ली का मुखर्जी नगर जहां हर साल कई बच्चे आई ए एस बनने का सपना लेकर आते है और हर साल कई बच्चे इस सपने को अगले साल पूरा करने के लिए रुक जाते हैं। ऐसे में संतोष जब गाँव डुमरी से दिल्ली के लिए चला तो उसकी आँखों मे आई ए एस बनने का सपना तो था लेकिन वो दिल्ली के माहौल से इतना परिचित भी नही था। दिल्ली पहुंचकर कर उसे कैसा लगा? मुखर्जी नगर में उसे किस-किस तरह के लोग मिले? मुखर्जी नगर जहां, हर साल कुछ बच्चों के सपने पूरे होते थे तो कई बच्चे असफल भी होते थे, औए में क्या वो अपना सपना पूरा करने में कामयाब हुआ? नीलोत्पल मृणाल जी का उपन्यास एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो एक छोटे से गाँव से अपने सपने पूरे करने की खातिर एक बड़े शहर में आता है। वो दूसरे लोगों से अलग इसलिए है क्योंकि वो न नौकरी की तलाश में आया है और न ही ग्रेजुएशन करने आया है वो एक कोर्स की तैयारी करने के लिए आया है तो इसके लिए उसे एक विशेष स्थान के आसपास रहना पड़ता है और एक विशेष तरीके की जीवन शैली का अनुसरण करना पड़ता है। इस उपन्यास में चूंकि वो कोर्स आई.ए.एस. है तो इसके लिए मुखर्जी नगर में उपन्यास रचा गया है।

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संतोष जब UPSC की तैयारी करने के लिए दिल्ली आता है तो यहां की व्यवस्था, लोग और रहने की जगह को देखकर असमंजस में पड़ जाता है। इसके अलावा यहां उसे एक और झटका लगता है जब उसे ये बताया जाता है कि गाँव से जुड़ी हर चीज एक पिछड़ेपन की निशानी है फिर चाहे वो गाँव की बोली हो या उधर का संगीत। ऐसी धारणा अक्सर हर सझर में होती है। मैं जब दिल्ली आया तो मेरे शहर पौड़ी को यहाँ के लोग गाँव कहते थे।

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अगर आप इस किताब को मुफ्त में बिना कोई पैसा खर्च किये इसे अपने फ़ोन में पढ़ना चाहते हैं तो आप बड़े आराम से इसे फ्री में डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं। इसके लिए आपको नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करना होगा। यह किताब अपने आप आपके फोन में डाउनलोड हो जायेगी। 

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उन्हें बताना पड़ता था कि वो कस्बा है गाँव नहीं। फिर इधर के लड़कों के रहने का तरीका भी छोटे शहरों से अलग होता था। अब तो खैर छोटे-छोटे कस्बे भी शहरों की तरह हो गये हैं। उधर भी नये फैशन के कपड़े, नये स्टाइल के बालों वाले लड़के मिल जाते हैं लेकिन उस वक्त ऐसा नहीं होता था। ये कल्चर शॉक हर उस व्यक्ति को लगेगा जो एक छोटे शहर से बड़े शहर की तरफ आयेगा। मैं जब मुम्बई गया था तो वहाँ की भीड़ और छोटे-छोटे फ्लैट्स मेरे लिए एक नया अनुभव था। यहां तक की जब दसवीं के बाद दिल्ली आया था तो वो भी ऐसा ही अनुभव था। इसलिए मैं संतोष के साथ अपने आप को जोड़ने में मुझे ज्यादा परेशानी नही हुई।

उपन्यास के बाकी किरदार जैसे रायसाहब (ज्ञानी) रुस्तम सिंह (नेता) गुरुराज सिंह (रेबेल), मनोहर इत्यादि वही है जो आपको किसी भी कॉलेज या किसी भी कोर्स की तैयारी करते हुए मिल जायेंगे।

अगर आप आई आई टी की कोचिंग के लिए जायेंगे तो ऐसे लोग उधर भी मिलेंगे। मैंने कोचिंग घर रहते हुए ली थी तो उधर के छात्रों के संपर्क में कम ही आता था। लेकिन कॉलेज में ऐसे लड़के काफी मिले थे और ये उम्मीद भी है कि कोटा जैसी जगहों में जहां छात्र कोचिंग के लिए रहने जातें है ऐसे लोग मिल जायेंगे। ये किरदार बहुत जीवंत है और इनको पढ़ते हुए आपके मन मस्तिष्क में उन लोगों के अक्स उभरने लगता है जिन्हें आप जानते है और जो इनकी तरह हैं। उपन्यास बहुत मनोरंजक बना है। मैंने हर पात्र के साथ एक जुड़ाव महसूस किया। मैं उनके साथ हसा, उनकी असफलताओं में दुखी भी हुआ और सफलताओं में अपने को खुश होता हुआ भी पाया। जहां पर लेखक एक सस्पेंस क्रिएट करने की कोशिश की उधर मेरे दिल की धड़कन भी रुक गयी थी और जब वो लम्हा बीता तो मैंने चैन की सांस भी ली। जावेद का क़िरदार वैसे तो कुछ पंक्तियां और कुछ देर के लिए उपन्यास में जगह बना पाया लेकिन उसकी कहानी ने बहुत प्रभावित किया। मुझे उसके विषय में पढ़ते हुए मन में मलाल का अनुभव भी हुआ। अगर मैं कहूँ की मैं पात्रों के साथ मुखर्जी नगर में जिया तो ये कोई आश्चर्य की बात नही होगी। जब आप पात्रों के साथ उनकी भावनाओं को महसूस करते हैं तो मैं समझता हूँ कि वो लेखक की सफलता होती है और इसलिए ये उपन्यास मेरी नज़रों में एक बेहतरीन उपन्यास है। अगर आप कुछ अच्छा पढना चाहते हैं तो इस उपन्यास को एक बार जरूर पढियेगा मुझे यकीन है आप निराश नहीं होंगे।

उपन्यास के कुछ भाग

ये चेला पालने में फिरोज शाह के साढ़ू भाई थे।चेला बनाना और चेले से खाना बनवाना कोई इनसे सीखे। ये या तो आदमी को अपना चेला बनाते थे या जिससे इनकी फटती थी उसको गुरु बना लेते थे, पर अपने बराबर किसी को नही रखते थे। मनोहर की तरह खैनी खाने से रोकना चाचा को थोड़ा खटक गया था। उनसे रहा नही गया सो उन्होंने खैनी की डिब्बी जेब में डालते हुए कहा, “बेटा, खैनी रगड़ने, बनाने और खिलाने के बहाने तो ही रिश्ते बनते हैं। भले तुम्हारे शहर के आइसक्रीम में ये क्षमता कहाँ हैं। संतोष अजब सा भाव लिये खड़ा उन बालो का हवाला दे के गाँव मे साहस और हिम्मत की बात की जाती थी।एक बार खुद उसने अपने पिताजी को कहते सुना था कि “हमारी छाती में बाल हैं अभी, किसकी हिम्मत है जो हमारे खेत में बकरी घुसा के चरा देगा।” अभी वो सारी हिम्मत अखबार पर मुरझाई पड़ी थी। संतोष ने सोचा, ये तो सामंती सोच है। छाती पर बाल से भला कौन सी ताकत आती है? सिविल सेवा की तैयारी करने वालों से ज्यादा भयंकर आशावादी मानव संसार में और कहीं मिलना मुश्किल था। उसमें भी मुखर्जी नगर नम्बर एक पर था। बार-बार असफल होने पर भी लोग एक-दूसरे को लगातार सांत्वना देकर यहां रहने लायक बना ही देते थे।

समय का पहिया रुकता नहीं, ये सच यहां रहने वाले विद्यार्थियों से अच्छा कौन जानता। ये पहिया न केवल रुकता नही, बल्कि कितने नसीबों को अपने नीचे कुचलता जाता और कई की तकदीर इसी पहिये पर सवार हो के बहुत आगे निकल बढ़ जाती। मुखर्जी नगर का सम्पूर्ण कालचक्र पीटी, मेंस और साक्षातकार के मध्य चलता रहता था।

उपन्यास के अंतिम भाग का दृश्य

इसी बीच आई.ए.एस. का अंतिम परिणाम भी आ चुका था। बत्रा सिनेमा पहुंचते ही उसकी नजर इस तीन मंजिली इमारत के सबसे ऊपरी गयी तो आंखे चौंधियां गयी। विश्वास कर पाना असंभव था उस पर, जो गुरु ने अभी- अभी देखा और उसे लगातार देखे जा रहा था। लगभग पांच मिनट तक उस दृश्य को देखने के बाद उसने तुरंत काँपते हांथो से मनोहर को फोन लगाया

“अरे मनोहर लाल, मेरे भाई जल्दी आओ। संतोष मिल गया है।” गुरु ने चीखते हुए कहा…सीमेंट बेचने वाले मनोहर की आंख में पानी आते ही जैसे यादें ठोस हो गयी। उसे गुरु की कही गयी बात याद आ गई। अचानक की जिंदगी आदमी को दौड़ने के लिए कई रास्ते देती है, जरूरी नही की सब एक ही रास्ते पर दौड़ें। जरूरत है कि कोई एक रास्ता चुन लो और उस ट्रैक पर दौड़ पड़ो। रुको नही…..दौड़ते रहो। क्या पता तुम किस दौड़ के डार्क हार्स साबित हो जाओ।
हम सबके अंदर एक डॉर्क हार्स बैठा है जरूरत है उसको दौड़ाए रखने की जिजीविषा की।

तो चलिये देखते अगला डॉर्क हार्स कौन? कही वह आप ही तो नही!
जय हो।
अगर आपने उपन्यास नहीं पढा है तो इसे आप यहाँ पीडीऍफ़ में डाउनलोड करके पढ़ सकते हैं।

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