गांवों से शहर नहीं, शहरों से गांव की ओर “पलायन का नया चेहरा”

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नई दिल्ली। अभी तक हमने बिहार ,उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों के गांवों को रोजगार के लिए खाली होते देखा है। उत्तराखंड में प्रलय के बाद रोजगार के अवसरों में कई बदलाव देखने को मिले,आज भी वहां के कई गांव खाली है,ऐसे खाली मानो मानव आबादी कभी रहती ही ना हो। लेकिन कोरोना महामारी ने आज परिस्थितियों को उल्टा कर दिया है। कोरोना काल में और लॉक डाउन के बाद दिल्ली,गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे राज्यों से आपने लाखों मजदूरों को कभी भीड़ की शक्ल में कभी पैदल सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करते हुए अपने दुधमुंहे बच्चों के साथ। कुछ तस्वीरों ने तो लोगों को परेशान भी कर दिया, कई मजदूर चलते चलते और पटरियों पर सोते सोते काल के गाल में समा गए। कोरोना ने उस मजदूर को इतना भयभीत कर दिया कि वो किसी भी कीमत पर रुकने के लिए तैयार नहीं हुआ,हालांकि खाने से लेकर रुकने के तमाम प्रयास किये गए लेकिन असफल रहे।

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जिस मजदूर ने अपने खून पसीने से शहर को सींच कर विकसित किया उसके आकर को फैलाया आज वो मजदूर उसी से मुँह मोड़ लिया।इसमें बहुत कुछ शहरीकरण की भी कमी थी। भागते दौड़ते शहर में जब अपनों की ही कोई चिंता नहीं करता तो मजदूर तो गैर थे ज्यादातर मालिकों ने उन्हें उनके भरोसे पर ही छोड़ दिया। ये ही एक वो पल था जब मालिक और मजदूर के बीच की डोर टूट गई और मजदूर छोड़कर जाने लगा।पहले सैकड़ो में,फिर हजारों में,फिर लाखों में उसके बाद करोड़ों में। जो जहां था उसने छोड़ दिया सब कुछ और इस आसपास अपने उस गांव में चल दिया जिसे कभी वो छोड़कर आया था कुछ कमाने के लिए कुछ बनाने के लिए। उसके अंदर ये भावना घर कर गई कि जब सबने मरने जैसे हालातों पर छोड़ दिया है तो क्यों ना गांव में अपनों के पास चले।

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वहां शहरों जैसी सुविधा तो नहीं होगी लेकिन खाने के लिए मरने जैसे हालात भी नहीं होंगे। मजदूरों की इसी परेशानी को केंद्र सरकार ने भी समझा, जैसे हालात है उसमें कोई भी मजदूर जल्द शहरों में लौटेगा नहीं। जान के साथ जहां की चिंता भी सरकार को थी, इसी लिए गांवों की ओर जाने वाले मजदूरों के लिए उन्ही के गांवों में रोजगार की योजना शुरू की। जिसका नाम रखा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार योजना। प्रधानमंत्री जी के द्वारा 20 जून को 11 बजे बिहार के मुख्यमंत्री की मौजूदगी में वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरुआत बिहार के खगड़िया जिले के बेलदौर प्रखंड के तेलिहार गांव से की गयी है। इस अभियान के तहत 50 हज़ार करोड़ रूपये का खर्च केंद्र सरकार द्वारा किया जायेगा। यह अभियान 125 दिनों के लिए 6 राज्यों के 116 जिलों के सम्पन किया जायेगा। इस योजना के तहत 25 कार्य प्रमुख रूप से चुने गए है। जहां प्रवासी मजदूरों को रोजगार देना था।

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ये कार्य है कम्युनिटी सैनिटाइजेशन कॉम्पलेक्स, ग्राम पंचायत भवन, वित्त आयोग के फंड के अंतर्गत आने वाले काम, नेशनल हाइवे वर्क्स, जल संरक्षण और सिंचाई, कुएं की खुदाई, पौधारोपण, हॉर्टिकल्चर, आंगनवाड़ी केंद्र, पीएमआवास योजना (ग्रामीण), पीएम ग्राम संड़क योजना, रेलवे, श्यामा प्रसाद मुखर्जी RURBAN मिशन, पीएम KUSUM, भारत नेट के फाइबर ऑप्टिक बिछाने, जल जीवन मिशन आदि के काम ।
इस योजना का मकसद देश के ग्रामीण इलाकों में आजीविका के अवसर बढ़ाना और अपने घर वापस आये प्रवासी मजदूरों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना। अभियान में 12 मंत्रालय और विभागों को भी जोड़ा गया। ग्रामीण विकास मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालय,सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय,खान मंत्रालय,पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय,पर्यावरण मंत्रालय,रेलवे मंत्रालय,पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय,नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय,सीमा सड़क विभाग,दूरसंचार विभाग,कृषि मंत्रालय। प्रवासी मजदूर कैसे अपने लिए रोजगार पाए उसके लिए 26 जून को एक पोर्टल भी लॉन्च किया गया जहां मजदूर अपना रजिस्ट्रेशन करा सकते है इसके अलावा पंचायत और जिला स्तर पर भी वो रोजगार के लिए आवेदन दे सकते है। जिन 6 राज्यों के 116 जिलों में ये योजना शुरू की गई उनमें बिहार में 32, उत्तर प्रदेश में 31, मध्य प्रदेश में 24, राजस्थान में 22, ओडिशा में 4 और झारखंड में 3 जिले शामिल हैं। सरकार का आंकलन है ज्यादातर मजदूर शहरों से इन्हीं राज्यों और जिलों में पहुंचे। सरकार ने मजदूरों के रोजगार का इंतजाम गांवों में तो कर दिया लेकिन सरकार की ये योजना अकुशल मजदूरों के लिए है।

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लेकिन शहरों से आने वाली एक बड़ी आबादी कुशल मजदूरों की भी उनके लिए किसी तरह के अभियान की शुरुआत नहीं की गई। उदाहरण के लिए जो बेल्डिंग और प्रिंटिंग के काम को जानता होगा वो गांव में फावड़ा नहीं चला पायेगा। सरकार को कुशल कामगारों के लिए भी ऐसे ही किसी अभियान की शुरुआत करनी पड़ेगी वर्ना लाखों की आबादी भुखमरी के कगार पर पहुंच जाएगी। हम ये भी मानते है कि बड़ी संख्या में इस तरह के रोजगार गांवों में नहीं शुरू किए जा सकते क्योंकि वहां बिजली से लेकर सड़क और विकास के कई पहिये अभी भी थमे हुए है।

labourersलेकिन सरकार कुछ ऐसा प्लान कर सकती है कि जिन गांवों में कुशल मजदूर गए है उनके जिला मुख्यालय में इस तरह के प्रोजेक्ट शुरू किए जाए,अगर कोई खुद का रोजगार करना चाहता हो तो सिंगल बिन्डो सिस्टम हो उसे लॉन देने का, लॉन की वापसी भी कारोबार की तरक्की से जोड़ा जाए अगर काम अच्छा चल रहा हो तो उससे सही समय पर किश्त ली जाए ,अगर काम मंदा हो तो उसकी किश्तों को माफ भी किया जाए,वर्ना उनलोगों के दिमाग में यहीं बात रहेगी कि बड़े कारोबारी के लिए सब है लेकिन छोटे कारोबारी का कोई रखवाला नहीं। इस देश के आर्थिक विकास के पहिये को तभी सही तरीके से चलाया जा सकता है जब आप नीति भी समाज के सभी वर्गों को ध्यान में रख कर बनाये,वर्ना पहिये की एक भी कमानी कमजोर और ढीली होगी तो उसकी रफ्तार पर ही असर होगा।

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