जानिए इनसे विलुप्त होती राजकीय पक्षी ”गौरेया” को कैसे बचाया जाए

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sanjay kumar

नई दिल्ली।जी हां बिहार,एक ऐसा राज्य जो वर्षो से अपनी संस्कृति और महान विद्वानों के लिए जानी जाती है। बिहार का अतीत और इसकी समृद्दि इतनी प्रभावशाली है कि हर एक को बिहार से जुड़े होने का गर्व महसूस होता है।आज ‘बिहार दिवस’ के इस खास मौके पर हम बात कर रहें है अपने बिहार की जो सदियों से अपनी परंपराओं और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। ऐसे में यदि बात करें बिहार के राजकीय पक्षी की तो वो है ”गौरेया”।

sparrowमौका ‘बिहार दिवस’ का हो और बात राजकीय पक्षी ”गौरेया” की हो तो सबसे पहले बात यह सामने आती है कि आखिर घर-आंगनों में चहचहाने वाली “गौरेया” की संख्या लगातार कम क्यों होती जा रही है।

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आखिर क्या हम अपने गौरवशाली अतीत को और अपने राजकीय पक्षी को संजो कर नहीं रख सकते?आखिर क्या हमारी आने वाली पीढ़ी इस पक्षी से रु-ब-रू हो ही नहीं पाएगी। ऐसे कई सवाल है जो आधुनिकिकरण के इस दौर में लगातार उठते है। सवाल कई है पर जबाव सिर्फ इतना कि आखिर कैसे हम इसे संजो कर रख सकें और अपने आने वाली पीढ़ी को इसकी चहचहाहट से रु-ब-रू करा सकें।

sparrowआपको बता दें कि कभी हर घर में नजर आने वाली गौरैया अब गाहे-बगाहे ही नजर आती है। एक अनुमान के मुताबिक गौरैया की आबादी में 50-60 फीसदी तक की कमी आई है। यही वजह है कि गौरैया को बचाने को लेकर हर वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस भी मनाया जाता है।हर साल इस दिवस को मनाकर हम गौरैया की संख्या बढ़ाने का संदेश देते हैं।

sparrowतो इस मौके पर हम बात करेंगे एक ऐसे शख्स की जो कई वर्षो से लगातार विलुप्त होती गौरेया को बचाने में लगे हुए है। हांलाकि, ऐसे कई संस्थाएं है जो गौरैया के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं लेकिन व्यकितगत तौर पर “गौरेया” को बचाने की इनकी मुहिम काफी प्रशंसनीय है। जी हां, हम बात कर रहें है पटना के कंकड़बाग निवासी और पीआईबी के सहायक निदेशक संजय कुमार की जो वर्षों से गौरैया संरक्षण की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं।

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संजय कुमार के आवास पर सुबह से शाम तक गौरैयों की चहचहाहट सुनाई पड़ती है।उन्होंने घर की बालकनी में कई बॉक्स लगाये हैं। यहां 24 घण्टे दाना-पानी की व्यवस्था रहती है। साथ ही वे सोशल मीडिया और फोटो प्रदर्शनी के जरिए गौरैया के संरक्षण की अपील भी करते हैं। वे अपने आस-पास रहने वाले पड़ोसी या फिर ऑफिस के साथी सबसे इस बात की चर्चा करते है और गौरेया के संरक्षण के लिए उन्हें भी प्रेरित करते है। उनसे प्रभावित होकर कई लोग उनके साथ इस मुहिम में जुट गए हैं और अपनी घर की बॉलकनी में गौरेया को जगह दी है।

sanjay kumarसंजय कुमार कहते है कि छोटे आकार वाली खूबसूरत गौरैया पक्षी का जिक्र आते ही उन्हें अपने बचपन की याद आ जाती है। कभी इसका बसेरा इंसानों के घर-आंगन में हुआ करता था। लेकिन पर्यावरण को ठेंगा दिखाते हुए कंक्रीट के जगंल में तब्दील होते शहर और फिर गांव ने इन्हें हमसे दूर कर दिया है। एक वक्त हुआ करता था जब हर घर-आंगन में सूप से अनाज फटका जाता था तो फटकने के बाद गिरे अनाज को खाने ,गौरैया फुर्र से आती थी और दाना खा कर फुर्र से उड़ जाती थी।

sanjay kumarसंजय कहते हैं कि हम बचपन में इसे पकड़ने की कई बार कोशिश करते हुए खेला करते थे। टोकरी के नीचे चावल रख इसे फंसाते और पकड़ने के बाद गौरैया पर रंग डाल कर उड़ा देते थे। यह केवल मेरी ही कहानी नहीं है बल्कि हर उस व्यक्ति की है, जिसके घर-आंगन में गौरैया की चीं…चीं की चहचाहट से नींद खुलती थी।आज भी गौरैया की चीं…चीं की चहचहाहट से नींद खुलती है।

sparrowबिहार सरकार ने तो गौरैया को संरक्षण देने को लेकर पहल शुरू करते हुए जनवरी 2013 में गौरैया को राजकीय पक्षी को घोषित किया। लोगों के घर-आंगन-बालकोनी में इसकी चहचहाहट दोबारा गूंजने लगे, इसे लेकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है।सरकारी और गैरसरकारी संस्थान की ओर से लोगों को गौरैया बॉक्स और कृत्रिम घोसला दिया जाता है। इसके अच्छे नतीजे देखने को मिले हैं और गौरेया की संख्या में पहले की अपेक्षा काफी वृद्धि हुई है।

sanjay kumar picतो जरुरत है हमें सचेत होने की और समय रहते एक्शन लेने की और ऐसे लोगों से प्रेरणा लेकर अपनी संस्कृति और अपनी विरासत के लिए कुछ करने की।

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