देवरिया की सीट से भाजपा प्रत्याशी की गुत्थमगुत्था सुलझने का नाम ही नहीं ले रही। कभी युवा प्रत्याशी का नाम चलता है तो कभी बाहरी को लाने की अफ़वाह उड़ती है। कभी पुराने चेहरों पर दाँव लगने की बात ज़ोर पकड़ रही होती है तो अगले ही छण नए नए जोशीले चेहरे की चर्चा का बाज़ार गरम हो जाता है। इसी क्रम में क्षेत्र के एक नेता जो कि पूर्व भाजपा अध्यक्ष हैं एवं वर्तमान में मंत्री भी हैं, इनका नाम अफ़वाह में उड़ाया जा रहा है। वैसे तो ब्राम्हण बाहुल्य सीट होने के कारण ऐसे आसार कम ही हैं कि भाजपा किसी ग़ैर ब्राम्हण को टिकट देगी लेकिन किसी भी सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इनको टिकट नहीं देने का मुख्य कारण यह है कि पूरे जीवन में इन्होंने जितने चुनाव जीते हैं उससे ज़्यादा हारे हैं।
1980 से लेकर अभी तक 8 चुनाव हारे हैं और 3 ही जीते हैं। संघ से नज़दीकियों के बाद भी मंत्री जी के बढ़ते पूँजीवाद के कारण संघ और पार्टी में लोग इनसे खासे नाराज़ चल रहे हैं। इसके अलावा इन मंत्री जी की राजनीति ब्राम्हण विरोधी ही रही है और यही मंत्री जी के अनवरत हार का मुख्य कारण भी रहा है जो कि इनके टिकट की सम्भावना को और भी कम कर देता है।
कार्यकर्ताओं की मानें तो अगर इन को टिकट दिया जाता है तो जिले की अन्य दो लोकसभा सीटों पर ब्राह्मणों के नाराज होने का डर पार्टी को सता रहा है। सूत्रों की मानें तो पार्टी जिले से ही किसी अन्य ब्राह्मण चेहरे को प्रत्याशी बना सकती है, जिले की राजनीतिक समीकरण को एक ध्रुवीय होने से बचाने के लिए। अधिकारिक रूप से सिर्फ़ काँग्रेस ने नियाज़ अहमद जो कि मुस्लिम प्रत्याशी हैं उनको टिकट दिया है लेकिन महागठबँधन का प्रत्याशी अभी भी अधिकारिक रूप से अघोषित है और भाजपा के ग़ैर ब्राम्हण को टिकट देने पर यह गठबंधन ब्राम्हण प्रत्याशी को मैदान में उतारकर कभी भी बाज़ी पलट सकता है।
देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा कब तक निर्णय लेती है और किस रणनीति को अपनाती है। अगर देवरिया से मंत्री जी को प्रत्याशी बनाया जाता है तो देवरिया की पूरी राजनीति उनके इर्द गिर्द घूमने लगेगी जिससे बाक़ी गूट भी नाराज़ हो सकते हैं और भाजपा यह जोखिम लेना नहीं चाहेगी। अगर कार्यकर्ताओं की बात पर विश्वास किया जाए तो भाजपा 13 अप्रैल तक अपना प्रत्याशी तय कर देगी एवं किसी ब्राम्हन को ही टिकट देगी जिससे कि देवरिया की सीट पर भाजपा की जीत सुनिस्चित की जा सके।