एक बार फिर बिहार बाढ़ की चपेट में है जिसके कारण राज्य की 25 लाख से ज्यादा की आबादी प्रभावित है। राज्य के करीब 12 जिलों के 77 प्रखंडों के 546 पंचायत पानी में डूबे हुए हैं। अब तक 34 लोगों की मौत हो चुकी है, सालों से चली आ रही इस समस्या पर सरकार के तमाम दावों के बावजूद हालात वैसे ही हैं, जैसे हर साल रहते हैं।
पिछले 40 सालों ये यानी 1979 से अब तक बिहार लगातार हर साल बाढ़ से जूझ रहा है। बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के मुताबिक राज्य का 68,800 वर्ग किमी हर साल बाढ़ में डूब जाता है। आइए जानते हैं कि बिहार हर साल बाढ़ में क्यों डूब जाता है…..
बिहार में बाढ़ आने के चार प्रमुख कारण हैं….
1 नेपाल छोड़ता है पानी, तो डूब जाते हैं बिहार के कई इलाके
पिछले दो हफ्ते से नेपाल और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्र में भारी बारिश होने के कारण नदियों के जलस्तर में भारी वृद्धि हुई है। उत्तर बिहार के अररिया, किशनगंज, फारबिसगंज, पूर्णिया, सुपौल, मधुबनी, दरभंगा और कटिहार जिले में बाढ़ का पानी घुस गया है। कोसी, कमला, बागमती, गंडक, महानंदा समेत उत्तर बिहार की तमाम छोटी-बड़ी नदियों के तटबंधों के किनारे बसे सैकड़ों गांव जलमग्न हो गए हैं। नेपाल में जब भी पानी का स्तर बढ़ता है वह अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है। इसकी वजह से नेपाल से सटे बिहार के जिलों में बाढ़ आ जाती है।
2 फरक्का बराज की वजह से आती है बाढ़
फरक्का बराज बनने के बाद बिहार में नदी का कटाव बढ़ा है, सहायक नदियों द्वारा लाई गई गाद और गंगा में घटता जलप्रवाह समस्या को गंभीर बनाते हैं। बिहार में हिमालय से आने वाली गंगा की सहायक नदियां कोसी, गंडक और घाघरा बहुत ज्यादा गाद लाती हीं। इसकी वजह से पानी आसपास के इलाकों में फैलने लगता है। नदी में गाद न हो और जलप्रवाह बना रहे तो ऐसी समस्या आए ही नहीं।
जरूरत के हिसाब से तटबंधों का काम होना
1954 में बिहार में 160 किमी तटबंध था, तब 25 लाख हेक्टेयर जमीन बाढ़ प्रभावित थी अभी करीब 3700 किमी तटबंध हैं लेकिन बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र बढ़कर 68.90 लाख हेक्टेयर हो गया जिस तरीके से बाढ़ में इजाफा हो रहा है, उस हिसाब से तटबंधों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही है।
जलग्रहण क्षेत्रों में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई
बिहार में जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) में पेड़ों की लगातार अंधाधुंध कटाई हो रही है। इसकी वजह से कैचमेंट एरिया में पानी रुकता ही नहीं, कोसी नदी का कैचमेंट एरिया 74,030 वर्ग किमी है। इसमें से 62,620 वर्ग किमी नेपाल और तिब्बत में है, सिर्फ 11,410 वर्ग किमी हिस्सा ही बिहार में है। पहाड़ों पर स्थित नेपाल और तिब्बत में ज्यादा बारिश होती है तो पानी वहां के कैचमेंट एरिया से बहकर बिहार में स्थित निचले कैचमेंट एरिया में आता है। पेड़ों के नहीं होने की वजह से पानी कैचमेंट एरिया में न रुककर आबादी वाले क्षेत्रों में फैल जाता है।
1979 से अब तक कितना नुकसान हुआ बिहार में बाढ़ से
8570 लोगों की बाढ़ से संबंधित विभिन्न कारणों की वजह से मौत हुई।
25,776 करोड़ हेक्टेयर जमीन बाढ़ के पानी में डूब गई।
7.70 करोड़ हेक्टेयर जमीन बाढ़ के पानी में डूब गई।
3.74 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर लगी फसल खराब हो गई।
7969 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है फसलों के खराब होने से
1.15 करोड़ मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं।
4151 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है सार्वजनिक इमारतों के टूटने से
बिहार में अब तक की सबसे खतरनाक बाढ़
2016 : 12 ज़िले बुरी तरह बाढ़ की चपेट में रहे, 23 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित और 250 से ज्यादा लोगों की मौत हुई।
2013: जुलाई में आई बाढ़ से 200 लोग मारे गए, बाढ़ का असर 20 जिलों में था, करीब 50 लाख लोग प्रभावित हुए
2011: बाढ़ का असर 25 जिलों में था, 71.43 लाख लोगों के जनजीवन पर असर पड़ा, 249 लोगों की जान गई।
2008: 18 जिले बाढ़ की चपेट में, 50 लाख लोग प्रभावित हुए, 258 लोगों की मौत हुई, 34 करोड़ की फसलें खराब हुई।
2007: 22 जिलों में बाढ़ का कहर, 1287 लोगों की जान चली गई,2.4 करोड़ लोग प्रभावित हुए, संयुक्त राष्ट्र ने इसे बिहार के इतिहास की सबसे खराब बाढ़ कहा था। 2004: 20 जिलों के 9,346 गांवों के 2 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए, 885 लोगों की मौत हुई, 522 करोड़ की फसलों का नुकसान हुआ।
2002: बाढ़ का असर 25 जिलों में था, 489 लोगों की मौत हुई. 511 करोड़ से ज्यादा की फसलें तबाह हुईं, 8,318 गांव जलमग्न रहे।
2000: 33 जिलों में रहा बाढ़ का असर, 12 हजार से अधिक गांव बाढ़ की चपेट में रहे, 336 लोगों की जान गई. 83 करोड़ की फसलें तबाह हुईं।
1987: बाढ़ का सबसे बुरा असर 1987 में देखने को मिला, 1987 में आई बाढ़ में 30 जिलों के 24518 गांव प्रभावित हुए थे, 1399 लोगों की मौत हुई. 678 करोड़ रुपए की फसलें तबाह हुईं।