नई दिल्ली। भगवान शिव के वैसे तो कई नाम है जैसे कि भोलेनाथ, शंभुनाथ, शंकर, बम-भोले और कितने सारे लेकिन इन नामों में खास नाम है नीलकंठ…क्या आप जानते है कि भगवान भोलेनाथ का नाम नीलकंठ कैसे पड़ा? क्या आपको पता है इसके पीछे की पूरी कहानी…
वैसे तो सावन का महीना भगवान शिव को प्रिय होता है जिसमें भक्त शिव को खुश करने के लिए काफी पूजा-पाठ करते है और उनकी कृपा पाने के लिए उपासना भी करते है। कहा जाता है कि सावन में शिव के पूजन से कई तरह की बाधाएं दूर हो जाती है और उनकी कृपा-दृष्टि भक्त पर बढ़ जाती है। सावन में भक्त-जन मनोकामनाओं के लिए महादेव की उपासना करते हैं, क्योंकि सावन में भगवान शिव की कृपा जल्द प्राप्त होती है। इस बार सावन का महीना 6 जुलाई से 3 अगस्त तक रहने वाला है। तो आईए जानते है इससे जुड़ी बातें और इसके पीछे की कहानी…
जानिए कैसे शुरू हुआ सावन का महीना?
पौराणिक कथा के अनुसार जब देवता और दानवों ने साथ मिलकर समुंद्र मंथन किया था तो हलाहल विष बाहर निकला। विष के प्रभाव से सारी सृष्टि में काफी हलचल मच गई। ऐसे में सृष्टि की रक्षा के लिए स्वंय महादेव ने विष का पान कर लिया। शिव जी ने विष को अपने कंठ के नीचे धारण कर लिया। यानी विष को गले से नीचे जाने ही नहीं दिया। विष के प्रभाव से भगवान भोले का कंठ नीला पड़ गया और उनका एक नाम नीलकंठ पड़ गया।
जब विष का ताप शिव के ऊपर बढ़ने लगा तब विष का प्रभाव को कम करने के लिए पूरे महीने घनघोर बारिश हुई जिससे विष का प्रभाव कुछ कम हुआ। लेकिन ज्यादा बारिश से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने अपने माथे पर चन्द्रमा को धारण किया। चन्द्रमा को शीतलता का प्रतीक माना जाता है और भगवान शिव को इससे शीतलता मिलती है।
ये घटना सावन के महीने में घटी थी, इसलिए इस महीने का इतना ज्यादा महत्व है और इसलिए तब से हर साल सावन में भगवान शिव को जल चढ़ाने की परम्परा की शुरुआत हुई। तो सावन में आप भी शिव का अभिषेक कीजिए। वो आपकी हर परेशानी को दूर करेंगे।
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