नई दिल्ली।जी हां बिहार,एक ऐसा राज्य जो वर्षो से अपनी संस्कृति और महान विद्वानों के लिए जानी जाती है। बिहार का अतीत और इसकी समृद्दि इतनी प्रभावशाली है कि हर एक को बिहार से जुड़े होने का गर्व महसूस होता है।आज ‘बिहार दिवस’ के इस खास मौके पर हम बात कर रहें है अपने बिहार की जो सदियों से अपनी परंपराओं और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। ऐसे में यदि बात करें बिहार के राजकीय पक्षी की तो वो है ”गौरेया”।
आखिर क्या हम अपने गौरवशाली अतीत को और अपने राजकीय पक्षी को संजो कर नहीं रख सकते?आखिर क्या हमारी आने वाली पीढ़ी इस पक्षी से रु-ब-रू हो ही नहीं पाएगी। ऐसे कई सवाल है जो आधुनिकिकरण के इस दौर में लगातार उठते है। सवाल कई है पर जबाव सिर्फ इतना कि आखिर कैसे हम इसे संजो कर रख सकें और अपने आने वाली पीढ़ी को इसकी चहचहाहट से रु-ब-रू करा सकें।
संजय कुमार के आवास पर सुबह से शाम तक गौरैयों की चहचहाहट सुनाई पड़ती है।उन्होंने घर की बालकनी में कई बॉक्स लगाये हैं। यहां 24 घण्टे दाना-पानी की व्यवस्था रहती है। साथ ही वे सोशल मीडिया और फोटो प्रदर्शनी के जरिए गौरैया के संरक्षण की अपील भी करते हैं। वे अपने आस-पास रहने वाले पड़ोसी या फिर ऑफिस के साथी सबसे इस बात की चर्चा करते है और गौरेया के संरक्षण के लिए उन्हें भी प्रेरित करते है। उनसे प्रभावित होकर कई लोग उनके साथ इस मुहिम में जुट गए हैं और अपनी घर की बॉलकनी में गौरेया को जगह दी है।
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