आज ज़ी क्लासिक पर Haqeeqat फिल्म का ये गीत सुनते हुए एहसास हुआ की हम 1962 की लड़ाई में कितने मजबूर थे , हमारे पास न तो हथियार था, न ही गोलियां, तोप और मोर्टार की बात करना उस कल्पना के सामान है की किसी भूखे को रोटी के साथ सब्जी और दाल मिल जाए, थी तो केवल एक चीज, वो था हौसला , हिम्मत और देश के लिए मर मिटने का एक विकल्प , वास्तव में बलराज साहनी ने सैनिक के अभिनय को मर कर भी जिन्दा कर दिया है , फिल्म का वो सीन जब सेना की आखरी टुकड़ी बची होती है और वायरलेस से बलराज साहनी को ये मैसेज मिलता है की भारत के लोग उन्हें सहीद समझ रहे है। .. ये गीत सुन के रोंगटे खड़े हो जाते है , की जब उनके घर वालो ने ये खबर सुनी होगी की वो मर गए है तो वह क्या क्या हुआ होगा … ये गीत जरूर सुने
होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा – hoke majabuur mujhe usane bhulaayaa hogaa
होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा ज़हर चुपके से दवा जानके खाया होगा होके मजबूर... भूपिंदर: दिल ने ऐसे भी कुछ अफ़साने सुनाए होंगे अश्क़ आँखों ने पिये और न बहाए होंगे बन्द कमरे में जो खत मेरे जलाए होंगे एक इक हर्फ़ जबीं पर उभर आया होगा रफ़ी: उसने घबराके नज़र लाख बचाई होगी दिल की लुटती हुई दुनिया नज़र आई होगी मेज़ से जब मेरी तस्वीर हटाई होगी हर तरफ़ मुझको तड़पता हुआ पाया होगा होके मजबूर... तलत: छेड़ की बात पे अरमाँ मचल आए होंगे ग़म दिखावे की हँसी ने न छुपाए होंगे नाम पर मेरे जब आँसू निकल आए होंगे \- (२) सर न काँधे से सहेली के उठाया होगा मन्ना डे: ज़ुल्फ़ ज़िद करके किसी ने जो बनाई होगी और भी ग़म की घटा मुखड़े पे छाई होगी बिजली नज़रों ने कई दिन न गिराई होगी रँग चहरे पे कई रोज़ न आया होगा होके मजबूर... https://www.youtube.com/watch?v=5l97Ul5X2A0&feature=youtu.be
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