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महादेवी वर्मा की भाषा शैली

महादेवी वर्मा एक प्रसिद्ध कवियत्रि थी, जिनकी तुलना आधुनिक मीरा से की जाती है। फारूखाबाद में जन्मी महादेवी वर्मा  गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ थी। इन सभी क्षेत्रों में निपुण होने की वजह से उनकी तुलना छायावादी युग के प्रमुख कवि रह चुके सुमित्रानन्दन पंत, जय शंकर प्रसाद और सूर्याकांत त्रिपाठी निराला के साथ की जाती है।

महादेवी वर्मा की भाषाशैली

इनकी  भाषाशैली की बात करें, तो महादेवी जी ने अपनी अद्भुत रचनाओं में अत्‍यन्‍त मूल्यवान एवं सशक्‍त शब्दों का उपयोग किया है। उन्होंने गद्य और कहानियां लिखने के लिए आम बोल-चाल की भाषा या खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इसके अलावा उन्होंने अपनी महत्तवपर्ण रचनाओं में उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का भी इस्तेमाल किया है।

महादेवी वर्मा की गद्य भाषा शैली तत्सम शब्द प्रधान शब्दावली से लैस है। इसके अलावा उनके लेखन में अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू और फ़ारसी के शब्द भी देखने को मिलते हैं। उनके काव्य में संवेदना, करुणा, दया और संगीत का अनुभव होता है।

महादेवी वर्मा की रचनाएं (कहानियां और गद्य कृतियां)

  • सोना हिरनी
  • वह चीनी भाई
  • बिंदा
  • गौरा गाय
  • दुर्मुख-खरगोश
  • भक्तिन
  • बिबिया
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